लॉ स्टूडेंट: नमस्ते सर! सबसे पहले धन्यवाद कि आपने हमें समय दिया। आप जैसे प्रेरणास्पद व्यक्तित्व से बातचीत करना हर लॉ छात्र का सपना होता है।

Adv. Sourabh Mishra: नमस्कार। यह मेरा सौभाग्य है कि युवा मुझसे सीखना चाहते हैं। मुझे खुद भी युवा पीढ़ी से बहुत कुछ सीखने को मिलता है।


लॉ स्टूडेंट: सर, आप एक गरीब मैथिली ब्राह्मण परिवार से निकलकर बिहार के नामी वकीलों में शुमार हैं। यह सफर कितना कठिन था?

Adv. Sourabh Mishra:
बहुत कठिन, लेकिन हर कदम ने मुझे मजबूत बनाया। हमारे घर में किताबों से ज़्यादा कर्ज़ के कागज़ हुआ करते थे। लेकिन माँ (मेघा देवी) ने हमेशा मुझे पढ़ाई की ओर प्रेरित किया। और मैंने ठान लिया कि कानून की पढ़ाई करके, सिर्फ अपनी ज़िंदगी नहीं, पूरे समाज की दिशा बदलूंगा।


लॉ स्टूडेंट: आपने Criminal Law और Criminal Psychology दोनों में डॉक्टरेट की डिग्री ली है — यह आम नहीं है। कैसे हुआ यह निर्णय?

Adv. Sourabh Mishra:
मुझे हमेशा यह जानने में रुचि थी कि अपराध सिर्फ घटना नहीं, एक मानसिक प्रक्रिया है। जब तक हम अपराधी की सोच को नहीं समझेंगे, तब तक उसे रोक नहीं सकते। इसलिए मैंने दोनों क्षेत्रों में गहराई से अध्ययन किया — ताकि न्याय सिर्फ सज़ा देने तक सीमित न रहे, बल्कि समाधान और सुधार का रास्ता भी बन सके।


लॉ स्टूडेंट: आप पटना सिविल कोर्ट, मधुबनी सत्र न्यायालय और कभी-कभी हाईकोर्ट में भी केस लड़ते हैं। इतने अलग-अलग स्तरों पर काम करना कैसे सम्भव होता है?

Adv. Sourabh Mishra:
यह समय प्रबंधन और कर्तव्य भावना का मामला है। मेरे लिए कोर्ट का स्तर नहीं, केस का उद्देश्य मायने रखता है। चाहे वह मधुबनी की पंचायत हो या हाईकोर्ट का बड़ा मामला — अगर इंसाफ की ज़रूरत है, तो मैं वहाँ मौजूद रहूंगा।


लॉ स्टूडेंट: आपने 20 से अधिक राष्ट्रीय पुरस्कार और गोल्ड मेडल्स प्राप्त किए हैं। इनमें से कौन सा सबसे खास लगता है?

Adv. Sourabh Mishra:
हर सम्मान खास है, लेकिन जब मुझे एक बार “न्यायदूत सम्मान” मिला — एक ऐसे केस के लिए जिसमें एक विधवा महिला को ज़मीन के अधिकार के लिए 6 साल लंबा संघर्ष करना पड़ा — वो पल मेरी आत्मा को छू गया। पुरस्कार तो कागज़ पर होते हैं, लेकिन किसी की आंखों में आभार के आँसू ही मेरी असली जीत है।


लॉ स्टूडेंट: आपने कई केस महिलाओं और गरीब परिवारों के लिए मुफ्त लड़े हैं। इसके पीछे प्रेरणा क्या थी?

Adv. Sourabh Mishra:
क्योंकि मैं खुद उस गरीबी को जी चुका हूँ। मुझे पता है कि न्याय खरीदने की चीज़ नहीं होनी चाहिए। अगर किसी महिला या बच्चे के पास पैसे नहीं हैं, तो क्या उसे अन्याय सहते रहना चाहिए? मैंने तय किया कि जहाँ भी संभव हो, मैं न्याय को मुफ्त पहुँचाऊंगा।


लॉ स्टूडेंट: परिवार का क्या योगदान रहा इस सफर में?

Adv. Sourabh Mishra:
मेरी माँ, मेघा देवी, ने मुझे संस्कार दिए। मेरी पत्नी, शोभा सिंह मिश्रा, ने मुझे हिम्मत दी। जब पूरी दुनिया ने मुझसे मुँह मोड़ा, उन्होंने मेरा हाथ थामा। उनके विश्वास ने मुझे कभी टूटने नहीं दिया। मेरी हर जीत में उनका नाम पहले आता है।


लॉ स्टूडेंट: आपने कितनी भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया है? क्या यह आपके कानूनी कार्य में मदद करता है?

Adv. Sourabh Mishra:
जी हाँ, मुझे हिंदी, मैथिली, भोजपुरी, अंगिका, मगही, और कुछ बंगाली भी आती है। भाषा का ज्ञान वकालत में बहुत काम आता है। जब कोई व्यक्ति अपने ही शब्दों में अपना दुख कह सकता है, और वकील उसी भाषा में जवाब दे, तो भरोसे की दीवार टूटती नहीं — मजबूत होती है।


लॉ स्टूडेंट: सर, आख़िरी सवाल — हम जैसे युवाओं को आप क्या संदेश देना चाहेंगे?

Adv. Sourabh Mishra:
मेरा संदेश यही है:

“कानून की पढ़ाई सिर्फ डिग्री के लिए मत करो, इंसाफ का सिपाही बनने के लिए करो।

किताबें ज़रूरी हैं, पर करुणा और ज़मीन से जुड़ाव उससे भी ज़्यादा। मेहनत करो, झुको मत, और हमेशा उन लोगों की आवाज़ बनो — जिनकी आवाज़ नहीं सुनी जाती।


📌 निष्कर्ष:

Advocate Sourabh Mishra न सिर्फ एक वकील हैं, बल्कि वे एक आंदोलन हैं — जो न्याय, संवेदना और संघर्ष की मिसाल बन चुके हैं।
उनसे मिलना, सीखना और सुनना, हर कानून विद्यार्थी के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

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